बाबा बालक नाथ चालीसा का पाठ विश्वास के साथ किया जाता है, जो सभी दुःखों और दर्दों को दूर करने में सहायक होता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन बाबा का स्मरण साफ मन से करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ बाबा की कृपा से पूर्ण हो जाती हैं। इस चालीसा के पाठ से संबंधित विशेष शक्तियों का अनुभव होता है।
विश्वास के अनुसार, जो व्यक्ति संतानहीन है, उसे बाबा के आशीर्वाद से संतान प्राप्ति होती है। इस चालीसा में बाबा बालक नाथ को एक सिद्ध पुरुष के रूप में वर्णित किया गया है, जो भगवान शिव की अमर कथा से जुड़ा हुआ है। उनकी कृपा से भक्तों के जीवन में सुख, संपत्ति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
शगुरु चरणों में सीस धर करूँ मैं प्रथम प्रणाम,
बख्शो मुझको बाहुबल सेव करुं निष्काम,
रोम-रोम में रम रहा रूप तुम्हारा नाथ,
दूर करो अवगुण मेरे, पकड़ो मेरा हाथ|
बालक नाथ ज्ञान भंडारा,
दिवस-रात जपु नाम तुम्हारा|
तुम हो जपी-तपी अविनाशी,
तुम ही हो मथुरा काशी|
तुम्हरा नाम जपे नर-नारी,
तुम हो सब भक्तन हितकारी|
तुम हो शिव शंकर के दासा,
पर्वत लोक तुमरा वासा|
सर्वलोक तुमरा यश गावे,
ऋषि-मुनि तव नाम ध्यावे|
काँधे पर मृगशाला विराजे,
हाथ में सुन्दर चिमटा साजे|
सूरज के सम तेज तुम्हारा,
मन मंदिर में करे उजियारा|
बाल रूप धर गऊ चरावे,
रत्नों की करी दूर वलावें|
अमर कथा सुनने को रसिया,
महादेव तुमरे मन बसिया|
शाह तलाईयाँ आसन लाए,
जिस्म विभूति जटा रमाए|
रत्नों का तू पुत्र कहाया,
जिमींदारों ने बुरा बनाया|
ऐसा चमत्कार दिखलाया,
सब के मन का रोग गवाया|
रिद्धि-सिद्धि नव-निधि के दाता,
मात लोक के भाग्य विधाता|
जो नर तुम्हरा नाम धयावे,
जन्म-जन्म के दुख बिसरावे|
अंतकाल जो सिमरन करहि,
सो नर मुक्ति भाव से मरहि|
संकट कटे मिटे सब रोगा,
बालक नाथ जपे जो लोगा|
लक्ष्मी पुत्र शिव भक्त कहाया,
बालक नाथ जन्म प्रगटाया|
दूधाधारी सिर जटा रमाए,
अंग विभूति का बटना लाए|
कानन मुंदरां नैनन मस्ती,
दिल विच वस्से तेरी हस्ती|
अद्धभुत तेज प्रताप तुम्हारा,
घट-घट की तुम जानत हारा|
बाल रूप धर भक्त रिमाये,
निज भक्तन के पाप मिटाए|
गोरक्ष नाथ सिद्ध जटाधारी,
तुम संग करी गोष्टी भारी|
जब उस पेश गई ना कोई,
हार मान फिर मित्र होई|
घट-घट के अंतर की जानत,
भले बुरे की पीड़ पहचानत|
सूक्षम रूप करें पवन आहारा,
पौणाहारी हुआ नाम तुम्हारा|
दर पे जोत जगे दिन रैना,
तुम रक्षक भय कोऊं हैना|
भक्त जन जब नाम पुकारा,
तब ही उनका दुख निवारा|
सेवक उसतत करत सदा ही,
तुम जैसा दानी कोई नाहीं|
तीन लोक महिमा तव गाई,
अकथ अनादि भेद नहीं पाई|
बालक नाथ अजय अविनाशी,
करो कृपा सबके घटवासी|
तुमरा पाठ करे जो कोई,
बंध छूट महां सुख होई|
त्राहि-त्राहि मैं नाथ पुकारू,
देहि अवसर मोहे पार उतारो|
लै त्रिशूल शत्रुगण को मारो,
भक्त जना के हृदय ठारो|
मात-पिता बंधु और भाई,
विपत काल पूछ नहीं कोई|
दूधाधारी एक आस तुम्हारी,
आन हरो अब संकट भारी|
पुत्रहीन इच्छा करे कोई,
निश्चय नाथ प्रसाद ते होई|
बालकनाथ की गुफा न्यारी,
रोट चढ़ावे जो नर-नारी|
रविवार करे व्रत हमेशा,
घर में रहे ना कोई कलेशा|
करूँ वंदना सीस निवाये,
नाथ जी रहना सदा सहाये|
भक्त करे गुणगान तुम्हारा,
भव सागर करो पार उतारा|